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Railways Reservation Roster - अध्याय 3 : रोस्टर प्रणाली का विकास (Vacancy-Based Roster से Post-Based Roster तक)

 

अध्याय 3 : रोस्टर प्रणाली का विकास

(Vacancy-Based Roster से Post-Based Roster तक)


3.1 रोस्टर प्रणाली की पृष्ठभूमि

भारतीय रेलवे जैसे विशाल संगठन में नियुक्ति और पदोन्नति की प्रक्रिया को केवल सामान्य प्रशासनिक नियमों के आधार पर संचालित करना संभव नहीं है। सामाजिक न्याय और समान अवसर को सुनिश्चित करने के लिए एक ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता होती है, जो आरक्षण नीति को निरंतर, संतुलित और पारदर्शी रूप से लागू कर सके। इसी आवश्यकता से रोस्टर प्रणाली का विकास हुआ।

रोस्टर प्रणाली का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आरक्षण के संवैधानिक प्रावधान केवल कागज़ों तक सीमित न रहें, बल्कि व्यावहारिक रूप से प्रत्येक नियुक्ति में परिलक्षित हों।


3.2 प्रारंभिक दौर की व्यवस्था: वैकेंसी-आधारित रोस्टर

आरक्षण नीति के प्रारंभिक वर्षों में भारतीय रेलवे में वैकेंसी-आधारित रोस्टर प्रणाली लागू थी। इस प्रणाली के अंतर्गत आरक्षण को केवल उस वर्ष उत्पन्न हुई रिक्तियों के आधार पर लागू किया जाता था।

इस व्यवस्था में यह देखा जाता था कि किसी वर्ष कितनी रिक्तियाँ उपलब्ध हैं और उन्हीं रिक्तियों पर निर्धारित प्रतिशत के अनुसार आरक्षण लागू कर दिया जाता था। कुल स्वीकृत पदों की संख्या या दीर्घकालिक संतुलन पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था।


3.3 वैकेंसी-आधारित रोस्टर की कार्यप्रणाली

वैकेंसी-आधारित रोस्टर में प्रत्येक भर्ती चक्र को स्वतंत्र माना जाता था। यदि किसी वर्ष अधिक रिक्तियाँ उत्पन्न होती थीं, तो उसी अनुपात में आरक्षण लागू हो जाता था। अगले वर्ष फिर नई रिक्तियों के आधार पर आरक्षण की गणना की जाती थी।

इस प्रणाली में रोस्टर की निरंतरता नहीं होती थी और हर भर्ती प्रक्रिया को अलग-अलग इकाई के रूप में देखा जाता था।


3.4 वैकेंसी-आधारित रोस्टर से उत्पन्न समस्याएँ

समय के साथ यह स्पष्ट होने लगा कि वैकेंसी-आधारित रोस्टर प्रणाली व्यावहारिक स्तर पर कई गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर रही है। कुछ संवर्गों में आरक्षण प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक हो जाता था, जबकि कुछ संवर्गों में प्रतिनिधित्व अत्यंत असंतुलित हो जाता था।

विशेष रूप से छोटे संवर्गों में यह समस्या और अधिक गंभीर थी, जहाँ सीमित संख्या में पद होने के बावजूद आरक्षण बार-बार लागू होने से संरचना असंतुलित हो जाती थी। इससे प्रशासनिक असंतोष और न्यायिक विवाद बढ़ने लगे।


3.5 न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता

वैकेंसी-आधारित रोस्टर से उत्पन्न असंतुलन के कारण कई मामले न्यायालयों में पहुँचे। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इन मामलों पर विचार करते हुए यह स्पष्ट किया कि आरक्षण नीति को लागू करने का तरीका संविधान की भावना के अनुरूप होना चाहिए।

न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि आरक्षण का उद्देश्य स्थायी संतुलन और समान प्रतिनिधित्व है, न कि अस्थायी लाभ या असंतुलन उत्पन्न करना।


3.6 पोस्ट-आधारित रोस्टर की अवधारणा का उदय

न्यायालयों के दिशा-निर्देशों और प्रशासनिक अनुभव के आधार पर पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली की अवधारणा विकसित हुई। इस प्रणाली में आरक्षण का आधार रिक्तियाँ नहीं, बल्कि स्वीकृत पद (Sanctioned Posts) होते हैं।

प्रत्येक पद को पहले से यह निर्धारित कर दिया जाता है कि वह किस श्रेणी के लिए आरक्षित होगा। इस प्रकार रोस्टर पदों के साथ स्थायी रूप से जुड़ जाता है।


3.7 पोस्ट-आधारित रोस्टर की कार्यप्रणाली

पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली में कुल स्वीकृत पदों के बराबर रोस्टर बिंदु निर्धारित किए जाते हैं। प्रत्येक रोस्टर बिंदु एक विशिष्ट श्रेणी से जुड़ा होता है, जैसे सामान्य, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग।

जब किसी पद पर रिक्ति उत्पन्न होती है, तो उसी रोस्टर बिंदु के अनुसार उसी श्रेणी के उम्मीदवार से उस पद को भरा जाता है। इससे रोस्टर की निरंतरता बनी रहती है।


3.8 पोस्ट-आधारित रोस्टर के व्यावहारिक लाभ

पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली से आरक्षण नीति में स्थायित्व और संतुलन आता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कुल आरक्षण निर्धारित सीमा के भीतर ही रहे और किसी भी वर्ग को आवश्यकता से अधिक या कम प्रतिनिधित्व न मिले।

यह प्रणाली प्रशासन को स्पष्ट दिशा प्रदान करती है और नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाती है।


3.9 भारतीय रेलवे में पोस्ट-आधारित रोस्टर का अंगीकरण

भारतीय रेलवे ने न्यायालयों के निर्देशों और केंद्र सरकार की नीति के अनुसार पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली को अपनाया। रेलवे बोर्ड द्वारा इस संबंध में विस्तृत परिपत्र जारी किए गए, जिन्हें सभी ज़ोनल रेलवे और उत्पादन इकाइयों में लागू किया गया।

इन परिपत्रों के माध्यम से विभिन्न संवर्गों के लिए उपयुक्त रोस्टर संरचना निर्धारित की गई।


3.10 रोस्टर निरंतरता और प्रतिस्थापन का सिद्धांत

पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत निरंतरता (Continuity) है। इसका अर्थ यह है कि एक बार किसी पद का रोस्टर बिंदु निर्धारित हो जाने के बाद, भविष्य में भी उसी श्रेणी से प्रतिस्थापन किया जाएगा।

इससे वर्षों तक रोस्टर संतुलन बना रहता है और आरक्षण नीति में स्थिरता आती है।


3.11 प्रशासनिक सुधार के रूप में पोस्ट-आधारित रोस्टर

रेलवे प्रशासन के दृष्टिकोण से पोस्ट-आधारित रोस्टर प्रणाली एक महत्वपूर्ण सुधार है। इससे नियुक्ति प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित, विवाद-रहित और न्यायसंगत बनी है।

इस प्रणाली ने सामाजिक न्याय और प्रशासनिक दक्षता के बीच संतुलन स्थापित किया है।



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